खौफनाक मंज़र जो देख या सुन मौत के
रियासत से सियासत तक , दिल तो सबके दहल गए
कह लो बुरा चाहे जितना , या बुलवा लो बेबुनियाद इल्जामों की बैठके
उस अन्दर के अपने शैतान को कभी जो देख पाए होगेगौर फ़रमाया कभी , कि आगे बढ़ने की ज़िद में कहीं
कुछ जज़्बात , कुछ अपने , अब सपने रह गए
जो ली थी कभी दराज़ों के नीचे से
या जो फाइलों के वजन बढ़ा गए
कहीं वही तो नहीं ये लालच के भेड़िये
जो आज तुम्हारे अपनों को खा गए...
बदल जाओ , बदल डालो ये अपनी आँखों को धोखा देना
वरना शीशे के उस पार के दो हाथ , फिर गला तुम्हारा ही नाप जायेंगे !!
Good to see something meaningful...:)
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