Monday, August 8, 2011

tere mere beech mein

हमेशा  साथ  रहने  वालों  को  भी,
एक  आखिरी  मुलाक़ात  की  ज़रूरत  क्यूँ  है ...
साथ  जी  लें, पर  साथ  मरने  की  शर्त  क्यूँ  है!
ज़िन्दगी जो आज है बस वही है
जी  लें, फिकर  की फितरत  क्यूँ है...
भीड़  में  तनहा  होना  कुछ  ख़ास  नहीं  आजकल 
तनहा  भी 'मैं ', 'हम ' हो  जाएँ,
ज़िन्दगी कुछ यूँ  है...
मत  सोच  की ज़िन्दगी का  यह  गीत  अधूरा  क्यूँ  है ...........

1 comment:

  1. This was after my CPMT exams, year 2010, was missing my Kota buddies

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